Sadhana Shahi

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साथ अपनों का (कहानी) प्रतियोगिता हेतु -25-Jul-2024

साथ अपनों का

लीना छः भाई बहनों में पांँचवें नंबर की थी। उसकी मांँ दो बहनों की शादी करके ही भगवान को प्यारी हो गई थी। पिता थोड़े से खेत में खेती करके अपने परिवार का लालन-पालन ख़ुशी पूर्वक कर रहे थे। किंतु तभी उनकी खुशियों में एक बार फिर से ग्रहण लग गया और लीना के पिता की एक आंँख जाती रही। चूँकि पिताजी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो अपनी आंँख का इलाज़ करा सकें। क्योंकि उन्हें चार बच्चों की पढ़ाई-लिखाई,शादी ब्याह भी देखना था। उन्हें हर समय यह चिंता सताती रहती कि यदि उन्हें कुछ हो गया तो उनके बच्चों का क्या होगा! अतः वो दसवीं पास करने के पश्चात ही लीना का विवाह एक गृहस्थ के घर में कर दिए। लीना के घर में दूध- दही की नदियांँ तो नहीं बहती थीं, लेकिन उसका परिवार एक खुशहाल परिवार था। लीना के पति बैलगाड़ी चलाते थे। लीना शरीर से हृष्ट-पुष्ट और और तंदुरुस्त थी। शादी के पश्चात उसके ससुराल वालों ने उसे 12वीं पास कराया उसके पश्चात उसे महिला पुलिस का फार्म भरवाया जिसमें लीना का चयन हो गया। लीना के पुलिस में भर्ती होने पर पूरे घर में खुशियों की लहर दौड़ गई। लीना अपनी जॉइनिंग बरेली में किया। महिला पुलिस को ज्वाइन करने के पश्चात लीना ने दो बच्चों को जन्म दिया। जिनके पालन- पोषण करने में उसके पति ने अफना पूरा सहयोग किया। वो अपना बैलगाड़ी बेचकर लीना के साथ ही जाकर रहने लगे।

आज लीना प्रमोशन पाकर दरोगा हो गई है। उसका अपना घर, मकान, परिवार, एक खुशहाल ससुराल सब कुछ है।

सही कहा जाता है अपनों का साथ ही विकास का मूल है। यदि ईमानदारी से अपनों का साथ मिल गया तो इंसान को ज़मीन से आसमान पर पहुंँचा दे और यदि अपनों का विरोध मिलने लगा तो आसमान से धूल में मिला दे।

मात्र दसवीं पास लीना ईमानदारी से अपनों का साथ मिलने की वज़ह से ही आज दारोगा पद पर आसीन है।अपनों के साथ की वज़ह से ही आज वह समाज में एक सम्मानित और ख़ुशहाल ज़िंदगी जी पा रही है किंतु आज समाज में बहुत सी ऐसी महिलाएंँ हैं जो सही समय पर अपनों का साथ न पाने के कारण अपनी प्रतिभा, अपने सपनों को दफ़न कर एक जिंदा लाश बनकर जिंदगी को ढो रही हैं।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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1 Comments

hema mohril

07-Feb-2025 07:08 AM

v nice

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